'बदलाव मंच' कवि व समीक्षक भास्कर सिंह माणिक कोंच जी द्वारा ' प्रियसी रुठ जाने पर' विषय पर रचना

मंच को नमन
विषय-प्रियसी रूठ जाने से

शांत सागर में उथल-पुथल मच जाती
जीवन की क्रियाओं की चाल बदल जाती
सच कहता हूं तेरे प्रियसी रुठ जाने से
मस्त बहारों में भी प्रिय नीरसता छा जाती

शीतल झरने भी घबरा जाते सच कहता तुम से
वन उपवन भी मुरझा जाते सच कहता तुमसे
प्रियसी रुठ जाने से तेरे सुख शांति खो जाती
सच कहता तुमसे प्रिय समय की चाल बदल जाती

दिल को चैन नहीं मिलता तेरे प्रियसी रुठ जाने से
शब्द मौन हो जाते हैं प्रिय तेरे मौन हो जाने से
सच कहता प्रिय प्रगति की सांसे भी थम जाती 
सावन की रिमझिम बूंद तन मन में आग लगाती

लगती हैं अमावस जैसी पावन पूनम की रातें 
झूठी लगती है मन को दुनियां की सौगातें
प्रियसी रुठ जाने से तेरे चंदन की गंध सताती
सच कहता प्रिय तुमसे मन की मन में रह जाती
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक ( कवि एवं समीक्षक)कोंच

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