तेरे बिना सफर
अधूरा सा मेरा
जिस तरह चाँद बिना रात
की शुरूआत होती है
बिना मुलाकात के तुझसे
ज़िन्दगी जैसे बर्बाद होती है
शामिल न कर मुझे मंजूर है
पर अपनी यादों को
मुझमें रहने की इजाजत दे जा
चली हूँ साथ तेरे
न मंजिल की तमन्ना है
मुझे बस रहबर बनने की
ख्वाहिश दे जा
रोज जीती हूं
मैं तुझमें कभी
कभी इक बार मुझमें
भी तू सिमट के रह जा।
स्वरचित
नेहा जैन
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