🌹और मेरा बचपन चला गया!🌹
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आया झूमकर बसंती हवाओं सा ,
गुजर गया वो बचपन का फ़साना।
खुशियों का वो मौसम बड़ा ही सुहाना,
हसीन जिन्दगी,वो प्यारा सा लम्हा।
चंचल हवाओं नदी की धाराओं सा,
वो अल्हड़ सी मस्ती का कोई बहाना,
बाल-मन खुशियों का मधुर तराना।
जाति न पाति ना मजहब का जमाना,
का मन था सबसें बेगाना।
परियों की कहानी, राजा और रानी,
कितना मनभावन सुनाती थी नानी।
छूटा वो छुटपन की प्यारी सी मस्ती,
बारिश का पानी,कागज की कश्ती।
गीली मिट्टी का खिलौना बनाना,
कड़ी धूप में फिर उनकों सुखाना।
रेत में नन्हें हाथों से घरौंदा बनाना,
चुपके से खुद ही उसकों ढहाना।
आमों की टहनी पर बारी-बारी,
झूला झूलना और सबकों झुलाना।
बारिश के जल में भीगकर नहाना,
तितली के पीछे दूर तक जाना।
चिड़िया बुलबुल गौरैया पकड़ना,
गुड़ियाँ की शादी का उत्सव मनाना।
बन के बराती पैदल ही आना,
रोज बेरी के बेर मज़े लेकर खाना।
कटी पतंगों के पीछे दौड़ना,
धागें पकड़कर एक दूसरे से लड़ना।
मेरी यादों की बन कर कहानी,
और मेरा बचपन चला गया !
💐समाप्त💐 स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका :-शशिलता पाण्डेय
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