कवयित्री मधु वैष्णव मान्या जी द्वारा 'मैं हूं न' विषय पर सुंदर रचना

🌹 मैं हूं न 🌹
रो पड़ी अनुदित व्यथा वात्सल्य के आंगन,
शहद सा कानों में गूंज उठा जब,, मैं हूं न।
जज़्बातों के ज़र्द होते बाब भी संभल गए,
 जब उमंगों का मृदुल उपवन बोल उठा,मैं हूं न।
मसाफ़त का आंचल विकल हो गया था,
जब ख़ामोशी की खुलुस बोली, मैं हूं न। 
उड़ा प्रीत के घरौंदे से स्वार्थ का पहरा,
 जबरिश्तो का ज्योति पुंज बोल उठा,मैं हूं न।
चहकी गुम होती हसरतों की ये गलियां,
जबअभिलाषाओं के मोती बोले, में हूं न।
        🌹मधु वैष्णव मान्या 🌹
जोधपुर राजस्थान

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