आ अब गाँव चल#गजल#

*गजल*

*स्वरचित रचना*
आ अब गाँव चल मुझे ये मेरा घर कहता।
अभी काम बाकी  है बेबाक शहर कहता।

बालपन गुजारा जहां बचपन गुजारी है।
जो कभी था युवा वो अब हुआ बूढ़ा पुजारी है।।
आ अब भी लौट चल मुझसे मन्दिर का दर कहता।।

रातों को माँ अब भी चैन से नही होती है। 
यू तो कहती नही कुछ चुपके से रोती है।।

इसमें जरूर कोई बात तो है।
ये गाँव का बूढ़ा नजर कहता।।

क्यों आँखों से हुआ यू तू ओझल है।
करता जीवन भर कमाई फिर भी मन  में रौदन है।। 

पलकों के छाँव में पीपल वो गाँव में।
आ तो जरा मुझसे ले मिल पुराना नहर कहता।।

क्या तूने मान लिया जो है हुआ बेघर तू।
अरे अब समय नही लौट चल ये डर कहता।।

*प्रकाश कुमार* 
*मधुबनी, बिहार*

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