भगतसिंह दीवाने
वो भगत सिंह ऐसे दीवाने ,
लाहौर जेल चले कमाने ।
भारत माँ के आन की खातिर,
वो जान चले गवाँने ।।
चलो भगत सिंह दम घुटता हैं,
इन काल कोठरी दीवारों से।
सजा नही ये साजिस थी ,
ये बात सुनी हजारों से ।।
क्या खास लिखूं सुनसान पड़ा ,
उस आजादी के नायक की ।
जेलों में काटी जिंदगी ,
ये कहानी बड़ी भयानक थी ।।
कह ऐंन के आज भगतसिंह ,
कैसे भूले उस फाँसी को ।
जन्म दिया तुझको भगतसिंह ,
धन्य हो उस माँजी को।।
ऐन.के.सरस्वती
मौलिक स्वरचित रचना
दादुका कोटपूतली
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