शशिलता पाण्डेय जी# रोमांचिक सफर#बदलाव मंच#

एक जंगल का रोमांचक सफर
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एक घना बड़ा जंगल मे थे घने पेड़,
दिन में रात की तरह भयानक अंधेरा।
आगे बढ़ कर देखा चारो तरफ झाड़,
डरावनी जंगली जानवरों की आवाजें।
दिल ने कहा! मौत से डर मत ''आगें बढ़,''
आगे बढ़ने पर देखा बड़े-बड़े थे पेड़।
कही बंदर ,कहीं भेड़िया, कहीँ शेर,
लेकिन सब के सब दो पैरों पर थे खड़े।
एक दूसरे को बता रहे थे इंसानों जैसे खूँखार,
डर से छुप गई थी मैं ,मेरा कर ले न शिकार।
शेर भेड़िया से बोला !मेरी खुशी का नहीं पारावार!
अपनी बिरादरी जैसा इंसान कर रहा शिकार!
झूठ धोखेबाजी ठगी और जलसाजी जैसे वार,
अपनीं ही बहन बेटियों की अस्मत करे तार-तार।
हमारा जंगल काट अपना बनाया करतें है नीड़,
अब जंगल मे भी होगी खतरनाक पशुओं की भीड़
हम पशुओं का कर शिकार देते हमारा घर उजाड़,!
हमें अब मिलजुल कर करना होगा अपना प्रतिकार।
नही तो हमें इंसान गुलाम बना करेंगे पिजड़े में बन्द,
हमसें खेल-तमाशे करतब कराएंगे पैसा कमाएंगे।
बन्दर और भालुओं ने कहा!आपने ठीक कहा शहंशाह!
हमें पकड़ ले जायेगें!घर-घर नचाएंगे पिंजड़े में कर बंद!
तभी भेड़िये की नजर मुझपर पड़ी,मैं भय से भागी-दौड़ी!
अरे!यह क्या मैं तो बिस्तर से नीचे गिर पड़ी,
अच्छा! तो मैं नींद में सपना देख रही थी उस घड़ी!
जंगल का रोमांचक सैर का मजा ले रही थी पड़ी पड़ी।


समाप्त   स्वरचित और मौलिक
                        सर्वाधिकार सुरक्षित
                लेखिका-शशिलता पाण्डेय

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