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स्वरचित रचना:-
मैं धरती का लाल हूँ।
धरा के खातिर जाऊंगा।
चाहे हो कुछ भी इसके
सदके में शीश जाउँगा।।
ना बाते करे कोई देश में।
माँ भारती के विरोध में।।
क्योंकि विरोधियों का
मैं तो लहू पी जाउँगा।।
चाहे हो अंजाम कुछ भी
मैं बिल्कुल भी ना हारूँगा।।
मैं तो हूँ राम धारी
दिनकर का अनुयायी।
कलम का दास जिसको
पकड़े अटल बिहारी बाजपायी।
सत्य के राह में बिछ जाउँगा।।
और ना कोई मेरा लक्ष्य।
मैं तो करता काम स्वच्छंद।।
मैं तो हूँ करता सेवा निष्काम
भाव से ही कर्म के
राह में डट जाउँगा।
तिरँगा से लिपट कर जियूँगा।
इसी में लिपट कर आऊंगा।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार
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