🌹मेरा सच्ची दोस्त🌹
मैंनें जीवन मे होश संभाला,
एक सच्ची दोस्त है पुस्तक।
जब-जब जीवन मे पड़ी अकेली,
तब-तब एकमात्र बनी सहेली।
देकर शिक्षा ज्ञान-सम्मान बढ़ाया,
जीने का एक मूलमंत्र बताया।
ज्ञान -गर्व से ऊँचा मेरा मस्तक,
मैनें पढ़ डाली ढेरो पुस्तक।
जब भी संकट में घिर मैं जाती,
पुस्तक एक सच्ची राह दिखाती।
शिक्षा और सभ्यता देकर जीवन मे,
सुव्यवस्थित जीवन का पाठ पढ़ाती।
सारे विकार कर दूर अंतर्मन के,
सर्वउत्कृष्ट जीवन जीना सिखलाती।
हर लेती सारी दुविधा मन की,
जीवन का मार्ग सरल कर जाती।
जीवन में अंधेरा घिर जाये दुख का,
नूतन एक प्रकाश दिखला जाती।
हो ज्ञान-विज्ञान या रसोई का ज्ञान,
सच्ची-सखी पुस्तक को ही पाती।
सफर देश-विदेश या गाँव-शहर में,
नही अकेली मैं अपनें मन को बहलाती।
हर जीवन-संकट पीड़ा में संग-संग मेरे,
मेरी पुस्तक हरपल मेरा साथ निभाती।
नव-प्रभात की किरणों के जैसा,
जीवन में नव- प्रकाश फैला जाती।
मेरी दोस्त, सखी-सहेली आजीवन साथी,
एकमात्र पुस्तक ही मंजिल पर पहुँचाती।
मन के सारे क्लेश हर लेती ये पुस्तक,
विषाक्त मन में अमृत प्रवाहित कर देती।
जीवन-भर हर-पल हर लम्हो की साथी,
ये पुस्तक ही मेरी अनमोल थाती।
मूल्यवान ज्ञान-अलंकार से करती अलंकृत,
हर सुरक्षा आजीवन निश्चित कर जाती।
🌷समाप्त🌷 स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका-शशिलता पाण्डेय
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