भगत सिंह
रोम रोम में आजादी की
लहर भर लेके प्राण त्यागे देश - हेतु |
जन्म लिया था मांँ की
सेवा हेतु साथियों
को साथ लेकर |
कोमल स्वभाव का जैसा
दिखता खुद में देश भक्ति
की बिजली भरी हुई |
सामना किया अंग्रेज के
विरुद्ध खुले विद्रोह की
बुलन्दी अभूतपूर्व साहस
के साथ |
योवाओं में,
क्रान्तिकारी शक्ति
भरने के लेख लिखें,
अत्याचार सहते रहे
जनता के साथ देते रहे |
पल-पल कहते रहे "राख
का हर एक कण मेरी गर्मी
से गतिमान है मै एक ऐसा
पागल हूं जो जेल में भी
आजाद था" |
मौत से गले लगा कर आजादी
का सपना देखा, फांसी की
सजा घोषणा के बाद भी
भगत का सामर्थ्य बढ गया।
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