मंच को नमन
शीर्षक -मोह का धागा
बहुत मजबूत होता है मित्र मोह का धागा
कठपुतली की तरह नचाता मोह का धागा
अर्जुन ने छोड़े थे अपने तीर कमान रण में
किया भीम ने वध दुर्योधन का द्रोपदी प्रण में
द्रोणाचार्य ने मांगा अंगूठा एकलव्य का
हरे क्रीड़ा में पांडव धृतराष्ट्र के प्रांगण में
फिरता है मुक्ति के हेतु अश्वत्थामा अभागा
बहुत मजबूत होता है मित्र मोह का धागा
कंस ने माता-पिता बहन को बंदी बनाया
हिरणकश्यप ने पुत्र के लिए ही षड्यंत्र रचाया
सत्ता के मोह ने ही कौरव वंश को मिटाया
शिखंडी ने भीष्म को शूल की सैया लिटाया
बहुत मजबूत होता है मित्र मोह का धागा
जिद ठानी थी रावण ने अमरत्व पाने की
कोशिश की कालनेम ने जाल में फंसाने की
लिए प्राण बाली के सुंदरता की चाहे ने
रही मन में अधूरी इच्छा दुनियां नचाने की
वे मिटे माणिक जिसने गोला दंभ का दागा
बहुत मजबूत होता है मित्र मोह का धागा
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक ( कवि एवं समीक्षक) कोंच
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