शिक्षक दिवस पर कलम चली,व्यक्त करने उद्गार।
हे माॅ हंसवाहिनी, आप ही तो बनती है, मददगार।
माॅ की ही कृपा से,मुरख भी बन जाता है विद्वान।
शत् शत् नमन है माॅ तेरे चरणों में,करना कल्यान।
शिक्षक, शिष्यों को, ज्ञान से करता अभिसिंचित।
शिक्षा से , बढ़ाने का प्रयास, स्वार्थ नहीं किंचित।
अध्ययन,अनुभव से रहता है , जो कुछ भी ज्ञान।
शिष्यों में समावेशित करना,लक्ष्य होता है महान।
ज्ञान पुंज से वह सदा करता रहता है आलोकित।
ज्ञान का बढता भंडार, अज्ञान होता है विलोपित।
उसी ज्ञान गंगा से तो शिष्य बन जाते हैं लव-कुश।
धन्य है वाल्मीकि,चतुरंगिणी सेना होती है मायुस।
रावण जैसे राजा को रणक्षेत्र में किये थे विजित।
गुरुकृपा से शिष्यों ने उनको भी किया पराजित।
अश्वमेध घोड़ा को ,शिष्य दिये ,अहंकार का रुप।
पकड़ बाॅधे ,पराजित सेना को छुड़ाने आये भूप।
श्री राम चन्द्र जी,से लवकुश माॅगे थे वो जबाब।
माॅ सीता को जंगल में क्यों छोड़ दिये थे जनाब?
दोष क्या था माॅ सीता का आप किये परित्यक्त।
गुरु जी ने ये कहानी सुनाई,आप उसे करें व्यक्त।
गुरु कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को दिये थे शिक्षा।
चंद्रगुप्त मौर्य की सिंहासन की पूरी हुई इच्छा।
घनानंद के अहंकार को किये थे धूल धूसरित।
मैं भी शिक्षकों के सम्मान में आज हूॅ मुखरित।
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_गीता पाण्डेय_
_रायबरेली ,उत्तर प्रदेश_
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