लक्ष्य# एम. "मीमांसा" जी के द्वारा शानदार रचना#

एक रचना सादर समीक्षार्थ🙏
 शीर्षक--- *लक्ष्य*

है लक्ष्य अनिश्चित जब तक, 
जीत नही हार निश्चित है! 
मुख देखता नर हार का, 
यदि लक्ष्य नही संकल्पित हैं! 
नही अटल है लक्ष्य अगर, 
सफलता सदा सशंकित है! 
यदि दौड़ चले लक्ष्य संग, 
सफलता नही विलम्बित है! 
बिना लक्ष्य का यह जीवन, 
सर्वथा वृथा है व्यथित है! 
ज्ञानी का भी यही कथन है, 
बिना लक्ष्य के नर दुखित है! 
जो लक्ष्य को बदले सदा, 
समझे उसकी मति भ्रमित है! 
उस कर्म का महत्व नही, 
जिसका लक्ष्य परिवर्तित है! 
ध्वज फहरे जग में उसका, 
जिसका लक्ष्य नही खंडित है! 
जो पकड़े लक्ष्य अंत तक, 
अंत उसका आनंदित है! 
मत कहें है नसीब बुरा, 
इसका साक्ष्य नही लिखित है! 
भाग्य भरोसे ही रहना, 
तनिक विचारें क्या उचित है! 
बाधा आती है मग में, 
मगर वीर नही विचलित है! 
आँधी झंझावातों से, 
नही डरे कथा प्रचलित है! 
घिरे घटा से रवि लेकिन, 
सूर्योदय कहाँ बाधित है! 
दूर रहे बाधा उनसे, 
जिनका लक्ष्य निर्धारित है!! 

      एम. "मीमांसा"

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ