करोना की मिट्टी#मीनू मीना सिन्हा मीनल*राँची जी द्वारा बेहतरीन रचना#

*कोरोना की मिट्टी*
 पापा नहीं रहे अंकल.........।। फोन उठाते ही मधुकर सिंह को सुनाई पड़ा ।डेढ़ घंटे पहले   ही पति-पत्नी को  सुबह की चाय की प्याली के साथ ही घटना की जानकारी हो गई थी। लेकिन घर पर फोन कर पुष्टि करने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि घटनाक्रम की जानकारी ले सकें। डॉ. गुप्ता ने फोन करके बताया, सर, नसीरूद्दीन सर नहीं रहे ।उनका बेटा बिलावल ने बताया ।उसी  के घर पर बैठे हैं ।
जानकारी पक्की थी लेकिन विश्वास नहीं हो रहा था कि साजिया का फोन आ गया। कहने को कुछ शेष नहीं था। छह रोज पहले ही तो उनसे  बातें हुई थीं । उन्होंने बताया था कि सर्दी खांँसी है और बुखार भी है ।
लेकिन अपनी मोटी खुरदरी आवाज में कहा कि अरे ,यह सब तो चलता ही रहता है। इसबार ईद में नहीं आए। देखो,बकरीद में जरूर आना ।
सिंह जी ने हंँसकर कहा भी सर, कोरोना बहुत फैला है, नहीं आएंँगे। फिर इधर-उधर की बातें हुईं।
और आज यह खबर ...।
इधर-उधर से बटोरी जानकारी से हासिल हुआ कि  सात बजे सुबह ही उनकी बेटी एक्सरे के लिए ले जाने वाली थी। रात में खांँसी जोरों से हुई थी। कफ सिरप से कम तो हुई लेकिन फिर सुबह-सवेरे फिर उखड़ गई ।खांँसते-खांँसते ही शांत हो गए। अन्य नजदीकी मित्रों से बात हुई ।चालीस सालों से उनके घर पर मह मह -महकते  बिरियानी, लजीज गोश्त की दावतें होतीं रहतीं। इत्र से गमकते घर से सारे मित्र इत्र के फाहों को  कानों मे लगाए अपने-अपने घर सपरिवार  वापस होते तो चार-पांँच दिनों तक अपना भी घर खुशबू से सराबोर रहता। और अभी स्थिति.......।
 हाय रे कोरोना।
  चुँकि रिश्ता पुराना और गहरा था। सभी ने अपने-अपने दूर -दराज बसे बच्चों को जानकारी दी ।बच्चे भी गंगा-जमुनी तहजीब में पले-बढ़े थे। ईद-बकरीद में सूखे मेवे की तहों से झाँकती सेवईयांँ की तश्तरियाँ,  गोश्त -बिरियानी का जमकर लुत्फ उठाते तो 
तिल -संक्रांत, होली में कतरनी चूड़ा- दही ,आलूदम ,पुआ-पूरी, दही-बड़े की खुशबू में सब साथ थे ।रकाबियों की रकाबियाँ  खाली होतीं जातीं। रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे-धजे चमचमाते सलवार- कुर्ती, झिलमिलाते दुपट्टे में  साजिया, सुल्ताना शेरवानी कुर्ते में सजा- धजा बिलावल ,अम्मी -मम्मियों की चहकती आवाजें ,हंँसी-मजाक से गूँजता माहौल ।जब मियांँ नसीरूद्दींंन दरवाजे तक पहुंँचते तो जोरों की आवाज से अलार्म बजाते आते  मधुकर कहांँ हैं आप लोग ?
हमलोग आ गए हैं ।खुशियों से दमकता सभी का चेहरा और आज बच्चों ने सख्त ताकीद कर दी थी वहांँ नहीं जाना है। चारों मित्रों के पास बच्चे -बच्चियों का फोन आया, अंकल आइए ना.......।
सभी मित्रों ने चुप्पी साध ली हालांँकि बबलू सिंह की पत्नी ने पति पर जोर दिया कि आपको जाना चाहिए। लेकिन बेटा-बहू ने पोता -पोती का वास्ता देकर रास्ता रोक दिया। आखिर सभी की सहमति हुई कि वहांँ नहीं जाना है ।हांँ पड़ोस में बसे जान-पहचान वालों से खबर लिया जा रहा था ।रात आठ बजे  के करीब सड़क मार्ग से बेटा-बहू के आने से गमगीन परिवार साथ हो गया और सवेरे आठ बजे मिट्टी हो गई। अड़ोस -पड़ोस के लोग दूरी बनाते हुए कब्रिस्तान तक गए। हालांँकि कुछ नवयुवकों ने यह बात उठाई कि कोरोना की जांँच हो जाती तो ठीक होता । लेकिन बुजुर्गों ने डपट दिया। कोरोना के कहर से दबे सभी मित्रों ने दिल ही दिल में मिट्टी देकर दोस्त को अलविदा कहा।इसके साथ ही गहरी, पुरानी दोस्ती भी मिट्टी के परतों में दफन होती चली गईं।

*मीनू मीना सिन्हा मीनल*
राँची ,झारखंड

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