बातों ही बातों में🌹#शशिलता पाण्डेय जी द्वारा खूबसूरत रचना#

      🌹 बातों ही बातों में,,,,,🌹
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व्यर्थ की बातों में उलझकर,
सारी जिन्दगी निकल गई।
निकला रोज सुबह का सूरज,
जाने कब शाम ढल गई?
स्वार्थ,लोभ,ईष्या,अहंकार के,
डोर थामे समय भी फिसल गया।
खुद जिया ना दुसरो के काम आई,
ये जिंदगी भी देखते ही देखते 
साथ अपना भी एक दिन छोड़ गई।
बातों ही बातों में जिन्दगी की,
जानें कब हसीन शाम ढल गई?
हर लम्हा पल-पल गुजर गया।
सुकर्म भी कुछ जतन किया नही,
अपने-पराये भेद में जिन्दगी उलझ गई।
वक्त का पहिया आगे बढ़ गया,
बातों ही बातों में जिन्दगी बदल गई।
जिया भी नही एक पल को जिन्दगी,
देखते ही देखते मौसम की अदा बदल गई।
दोनों हाथों बटोरा बहुत धन जोड़ा,
सबकुछ यहीं छोड़ के खाली हाथ गई।
समय रेत की तरह मुठ्ठी से फिसल गया,
बातों ही बातों में हसीन शाम ढल गई।
आसमाँ पर रात का चाँद भी निकल गया,
काली रातों में जिन्दगी भी छुप गई।
खाली हाथ आया खाली ही चला गया,
बातों ही बातों में कब शाम ढल गई?
ना किसी के लिए ना अपने लिए जिया,
व्यर्थ की बातों में जिन्दगी निकल गई।

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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
रचनाकारा:-शशिलता पाण्डेय

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