जब सोचता हूँ।#प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन" जी द्वारा बेहतरीन रचना#

स्वरचित रचना

बदलाव मंच

जब सोचता हूँ
मन कुंठित हो उठता है।
जब तुम्हारे लिए सोचता हूँ।
 मैं तो इस समयकाल में 
 काल को भी कोषता हूँ।

इतना निर्दयता क्यों दिखाया।
तुम्हे वह चोट क्यों पहुँचाया।।

भला तुम तो हो तेजस्वी,
तुममें तो नेकी का तेज है।
तुम्हें चोटिल होते देख मेरा
 मन दुखी व हैरत अंगेज है।।

आखिर में हुआ क्या था।
जब दुर्घटना हुआ तो 
तुम्हारा मन कहाँ था।।

शायद कोई मुक्तक रच रहे थे।
या तुम देशभक्ति गीत रट रहे थे।।

किन्तु चोटिल होने पर
 भी नहीं घबराए दिखते हो।
दर्द तो हो ही रहा होगा फिर भी
 तुम मुस्कुराते हुए लगते हो।।

तुम्हे नमन है वीर हे मित्र तेजस्वी।
साहस के अद्भुत भंडार है तुममें
हो तुम स्वयं में परम यशस्वी।।

तुम युही प्रचण्ड ज्योत जगाते रहो।
तुम देश में राष्ट्रभक्ती बढाते रहो।।

हो भारत माता के सच्चे सपूत तुम।
माँ भारती के उदारता, ममता से 
सभी को यूहीं परिचित कराते रहो।।

इस चमन में बीज इसी तरह
तुम राष्ट्रीयता के लगाते रहो।
भारत माँ को महान बनाते रहो।।

इसी निर्भरता से आवाज बुलंद रखो।
ये कर्म युद्ध है  मित्र, सहज नहीं
 अपितु स्वच्छंद होकर जीतते रहो।।

 माँ भारती की गाथा जब-जब
अपने मुखवचन जो गाते हो।
सत्य कहता हूँ,तिरँगा के शान
 को और अधिक ऊँचा उठाते हो।।

आप जैसे शूरवीरों को 
हम ह्र्दय से नमन करते हैं।
आप जैसे के कारण ही गर्व से 
स्वयं को भारतीय हम कहते हैं।।

प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"

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