कवयित्री चंचल हरेंद्र वशिष्ट जी द्वारा रचना (विषय-परोपकार परमोधर्म:)

बदलाव अंतरराष्ट्रीय/ राष्ट्रीय साहित्यिक मंच

21:09:2020
शीर्षक: परोपकार परमोधर्म:

मानव का यदि जन्म मिला है,मानव सा तुम व्यवहार करो
जग में आए हो तो प्राणी थोड़ा सा तो उपकार करो।।

दिल न दुखाना कभी किसी का,अपना हो या ग़ैर कोई
जैसा चाहो ख़ुद के लिए वैसा सबसे व्यवहार करो
जग में आए .....................उपकार करो।।

साथ नहीं कोई ले जाता,धन दौलत चाहे कितनी हो
जीवन की धर्म तिज़ोरी में पुण्य और संस्कार भरो
जग में आए......................उपकार करो।।

याद रह जाते जग में केवल, शुभ कर्म जाने के बाद
इसलिए सभी से अपनापन,स्नेह और दुलार करो
जग में आए..................... उपकार करो।।

क्या लेकर आए थे जग में और क्या लेकर जाओगे
व्यर्थ की चिंता छोड़ रात दिन,तनिक सोच विचार करो
जग में आए.....................उपकार करो।।

मानुष तन अनमोल मिला है बीत रहा पल पल छिन छिन
ईर्ष्या,द्वेष,बैर और नफ़रत में इसे मत बेकार करो
जग में आए....................... उपकार करो।।

छल,फरेब और पाप कपट के साए से भी दूर रहो
आए जो मन में कुटिल विचार तुम तत्क्षण ही संहार करो
जग में आए......................उपकार करो।।

परोपकार जीवन की पूँजी सहज कमाई जा सकती
करके उपकार जगत पर ' चंचल 'तुम अपने भंडार भरो
जग में आए.......................उपकार करो।।

स्वरचित एवं मौलिक रचना:
चंचल हरेंद्र वशिष्ट, हिन्दी भाषा शिक्षिका,रंगकर्मी, कवयित्री एवं समाज सेवी
आर के पुरम,नई दिल्ली
9818797390

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