स्वरचित रचना
*चलो अनन्त पथ के अनुयायी*
क्यों खेलते हो धर्म
परिवर्तन का खेल।
क्या ऐसा करने से
होगा ईस्वर से मेल।।
करना है तो करो
ना ह्र्दय परिवर्तन।
तभी तो होगा सम्पूर्ण
चेतना का परिवर्तन।।
हिन्दू को कोई
मुस्लिम बनाये।
कोई मुस्लिम को
बनाये हिंदू।।
अबतो लगाओ इसपर बिंदु।
सहज नही इतना भी
रण में विजय होने का।
किन्तु ये समय नही हार के
भय से एकांत में रोने का।
काल के समक्ष होकर
स्वयं तेज ना नष्ट करो।
उठो धर्म के रक्षक उठो
केवल धर्म हेतु युद्ध करो।।
छोड़ दो कायरता का चोला।
ना यू सत्य का प्रतिकार करो।।
उठो केवल निर्भय बनकर प्यारे
बहादुरता से तुम खूब लड़ो।।
इतिहास में झाँकने का जरा
भी समय नही है अब रण में।
जो तुम जरा ध्यान से भटकोगे।
तो टूट जाओगे तुम एक क्षण में।।
देखते ही देखते जो है पर्वत वो
पल राई बनकर बिखड़ जाएगा।
जो हुआ पड़ा है ओझल तुझसे
केवल श्रम से नजर आएगा।
भूत भविष्य के चक्कर में
वर्तमान को ना छोड़ो तुम।
हो अनन्त राह के पथिक।
सन्देह का बन्धन तोड़ो तुम।।
चलो चलो कर्तव्य करते जाओ
बिल्कुल समय ना गवाओँ तुम।
बहुत कुछ खो दिया जिस लिए
अपने लगन से पूर्ण पाओ तुम।।
क्यों बेवजह बाँधते हो स्वयं को
निराशा के घोर अंधियारे में।
इससे बेहतर प्रयास करके
आगे बढ़ते जाओ उजियारे में।।
चलो बटोही आगे बढ़कर
नव नव तुम इतिहास रचों।
तुम हो ब्रह्मा के अनुयायी।।
जुटे रहे नव अविष्कार करो।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार
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