---लाश शहीद की---
लाश शहीद की
जब घर आती है
मां,बहन व पत्नी
कैसे यह सब सह पाती है
उठो,जागो नौजवान
आत्मा मेरी यह चिल्लाती है
पूछती है एक सवाल
जवानों की जगह
नेताओं की लाशें
क्यों नहीं आती हैं
तब दिल रो उठता है
कह उठता है
वक्त नहीं अब सहने का
बस और नहीं अब
चुप रहने का
गौर करो उस कश्मीर पर
नित्य न जाने
कितनी मांओं के लाल
वहां मरते हैं
फिर भी कैसे हम
चुप रहते हैं
कैसे हम जीते हैं
सोचो जरा जब
लाश शहीद की घर आती है
बात समझ नहीं आती है
क्यों डरते हो
क्या है मजबूरी
व्यवहार ऐसा करते हो
जैसे पड़ोसी तुम्हारा
दुश्मन नहीं नाती है
क्यों चिल्लाते हो
होती है हद सब्र की
होगी लड़ाई अबकी आर- पार की
जब कुछ नहीं कर पाते हो
लेकिन बतला दो
कितनी लाशें और उठवाओगे
अरे सरकारे तो
यूं ही आती जाती है
शहीद के परिवार की तो दुनिया ही उजड़ जाती है
रचनाकार:- शैलेन्द्र सिंह शैली©®
महेन्द्रगढ़, हरियाणा
9354998007
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