कलयुग#शशिलता पाण्डेय जी द्वारा#

👨‍👧कलयुग👨‍👧
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 सनातन धर्म मे,हिन्दू वैदिक
काल-गणना के अंतर्गत।
सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर बीते,
अब कलयुग की बारी है।
काला युग तो चल रहा अनवरत,
वैश्विक बीमारी कोरोना महामारी है।
ईमानदार हारे और बेईमान जीते,
धर्म की हानि अधर्म जारी है।
असत्य मद काम,क्रोध,लोभ मोह का,
अब तो पलड़ा भारी है।
सम्पूर्ण विश्व जल रहा क्रोध में,
ईर्ष्या अहंकार सब बुद्धि पर भारी है।
भाई-भाई बने अब शत्रु एक दूसरे के, 
कलयुग का प्रभाव अब जारी है।
अत्याचार बढ़ गया विश्व पर,
अशांति,प्रेम दया सब हारी है।
कलयुग तो बड़ा ही दुखदायी निकला,
 सब कलयुग में त्रस्त सबकी ये लाचारी है।
गुरु,पिता का सम्मान नही रहा अब,
उनपर भी हिसा का कहर जारी है।
कलयुग की लीला परिलक्षित हर ओर,
पुत्र पिता को अपना बैरी समझे,
ये कलयुग ने सबकी मति मारी है।
 दादा-दादी चाचा-चाची लगते बेगाने,
सिमटे रिश्तों में रिश्ता मतभेद-दुश्मनी जारी है।
 खंड -खंड में हुई विखंडित धरा यहाँ पर ,
भाई की भाई से दुश्मनी भारी है।
कोई रिश्ते का मोल नही अब,
धनी करे निर्धन का शोषण निर्धनता हारी है।
लूट, चोरी,भ्रष्टाचार हत्या, हिंसा, अत्याचार,
 नही कोई अंकुश प्रशासन भी हारी है।
 कलयुग के रिश्ते से प्रेम विलुप्त अब,
 मोबाइल औपचारिकता की पारी है।
कलयुग का खेल निराला दिन भी होगा काला,
अभी कोरोना की बीमारी जारी है।
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  स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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