एक चायवाला#शशिलता पाण्डेय जी द्वारा उम्दा रचना#

😊 एक चायवाला😊
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अल्ल-सुबह अपनी दुकान पर,
चाय बनाता था गर्मागर्म 'दुकानवाला'।
 बड़े प्यार से पिलाता था सबकों,
  गर्म -गर्म ' एक चाय का प्याला",।
लाकर दिल मे उमंग ,और जोश,
होते थे आलस दूर, होश हो जाते थे दुरुस्त।
 शीत में होता था, 'सोमरस का प्याला' 
 उसनें इसमें लौंग,इलाइची, अदरक डाला।
सभी के मन मे एक नया उत्साह,
जगाता था वह 'एक चायवाला'।
सुबह-सुबह खोले वह चाय की दुकान,
वह पिलाता था, गर्मागर्म 'चाय का प्याला'।
समाचार और खबरों के संग लोग,
पीते थे, अपनी-अपनी प्याली की चाय।
राजनीतिक बहस होने लगती थी जारी,
 चाय का असर, ऊँचे स्वर तर्क भी भारी।
लगती थी वहाँ, राजनीतिक लाइलाज बीमारी
 गर्मा-गर्म पीकर चाय देते थे सभी अपनी राय।
चाय वाले को भी लगी थी राजनीतिक बीमारी,
 चाय में थोड़ा स्वाद मिलाया अपने भाषण वाला।
अन्य पार्टीवालो का निकाल दिया उसनें दिवाला
 छोड़ दुकान चाय की,बन गया 'देश का रखवाला''।
कीचड़ में कमल खिलाया,चाय-दीवानों ने वोट डाला,
 बन ''प्रधानमंत्री'' सारे देश को,मजबूती से सम्भाला।
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😊समाप्त😊 स्वरचित और मौलिक
                     सर्वाधिकार सुरक्षित
           लेखिका:-शशिलता पाण्डेय

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