शीर्षक-शिक्षा वही जो राष्ट्र का गौरव बढ़ाये
दिनांक-04/09/2020
शिक्षा वही जो राष्ट्र के गौरव का मान बढ़ाये।
जिसको पाने से राष्ट्रीयता की भावना आयें।
उस शिक्षा को मिलना चाहिए अति सम्मान।
जिससे देशभक्ति का पैदा होता हो अरमान।
देशभक्ति के अरमाँ से ही आती है सम्पन्नता।
राष्ट्रीयता की भावना से दूर होती है विपन्नता।
नागरिकों में राष्ट्र के प्रति बढती है जागरुकता।
जिससे राष्ट्र के गौरव का सम्मान नहीं झुकता।
राष्ट्रीय गौरव के सम्मान में पैदा होते है आजाद।
राष्ट्रीय एकता,अखंडता,संप्रभुता होती आबाद।
अभ्युदय होता, सुभाष चन्द्र बोस जैसे सपूत।
जिनसे राष्ट्रीय अस्मिता बढती उनके बलबूत।
शिक्षा वही, जो राष्ट्र के गौरव का मान बढ़ाये।
जिससे जन जन में राष्ट्रीयता की भावना आयें।
प्रत्येक नागरिक कर्त्तव्य पथ पर बढता जायें।
राष्ट्र को गौरवशाली बनाने का वें भावना लायें।
अखंड भारत के सपनों को वे कर दें साकार।
काश्मीर से कन्याकुमारी तक हो एक आकार।
भले भिन्न भिन्न हो संस्कृति,विभिन्न हो पंथ।
देश की समृद्धि में, शामिल हो सभी महंथ।
शिक्षा वही जो राष्ट्र के गौरव का मान बढ़ाये।
जिससे राष्ट्रीयता की भावना रग रग में आयें।
शिक्षा से ही होता हैं सुनागरिकों का विस्तार।
सुनागरिकों से ही,राष्ट्र का हो जाता है उद्धार।
स्वामी विवेकानंद जी ने दिखाये थे वह शिक्षा।
शिकागो के सरजमीं पे पूर्ण हो गया था इच्छा।
दुनिया मानी थी भारत की विश्व गुरु की उपाधि।
धन्य वे ऋषिजन,जिनकी विश्व विख्यात समाधि।
तपोबल से वे प्राप्त कर लेते थे ऐसा अद्भुत ज्ञान।
राष्ट्रीय गौरव में अभिवृद्धि कर, पाते थे सम्मान।
ऋषि,मुनियों जैसा, आज भी ज्ञान की दरकार।
जिससे सशक्त होता,पुरे विश्व में भारत सरकार।
स्वरचित कविता
गीता पाण्डेय(उपप्रधानाचार्य)
रायबरेली, उत्तर प्रदेश
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