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परम-पिता''परमेश्वर ने,
ये संसार बनाया है ।
रंग-बिरंगी इस दुनियाँ में',
रिश्तों का जाल' बिछाया है।
'अपने-अपने' फर्ज बताकर,
सबको' इसमें उलझाया है ।
एक दिन जाना सबको' है,
जो इस दुनियाँ में आया' है।
कोई' किसी का'' नही यहाँ,
बस,सब मोह-माया है ।
कभी' रंक बना 'राजा है ,
राजा को' 'रंक' बनाया है।
कर्म किया है जिसने जैसा,
वैसा ही दिन दिखलाया है
ये दुनियाँ' है रंगमंच' सी
भूमिका सबने निभाया है।
परोपकार को मानव-जीवन ने,
अपना लक्ष्य बनाया है।
' 'निःस्वार्थ मानवता ने ही तो,
यहाँ अमरत्व को पाया है ।
वरना' जीव-जंतु भी आते,
लेकर' दुनियाँ में अपनी काया है ।
मानव -तन लेकर भी जिसने,
खुद खाया और कमाया' है।
इंसानी काया लेकर भी,
धरती का बोझ बढ़ाया है।
'एक पशुऔर मानव में'',
इतना ही अंतर पाया है ।
बाकी दुनियाँ कुछ भी नही है,
क्षणभंगुर ये सारा जीवन।
ये कोमल काया मिट्टी की
बस' सब मोह-माया है।
🙅 समाप्त🙅स्वरचित और मौलिक
सर्वार्वाधिकार सुरक्षित
कवयित्री-शशिबलता पाण्डेय
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