सरस्वती वंदना
ये नमन हमारा श्री चरणों में स्वीकृत हो माँ भारती ।
कवि गण करते आरती माँ कवि गण गाते आरती ।।
बच्चे है हम दिल के सच्चे पर बुद्धि के कच्चे ।
कैसे है हम नहीं जानते माँ तुम कर दो अच्छे ।।
पूत कुपूत भले ही हो पर माँ ही उसे सुधारती ।
कविगण...............................................१
गूंगा को तुम गुणी बनाती ज्ञान का दीप जलाती ।
तुम देवों के काज बनाती , सुधीजनों को भाती ।।
माँ माँ कह जो शरण में आये उसके भाग्य संभारती ।
कविगण ..,.................................................२
ज्ञान कर्म और भक्ति भाव मम उर में भर दो माता ।
तेरे पाद पदुम को पा कर , छोड़ न मन कहीं जाता ।।
हंस वाहिनी ज्ञान दायिनी , जय जय जीभ पुकारती ।
कविगण .....................................................३
मेरी जिह्वा सत्य ही बोले , और मधुर मधुर उच्चारे ।
उज्जवल हो सब धवल दूध से जो हम सोच विचारे ।।
ब्रह्म विचार धार कर उर में , सुत को सदा दुलारती ।
कविगण ......................................................४
मक्खन पर ममता की ढेरी , माँ तूंँ सदा लुटाती ।
माँ माँ कह जब शिशु पुकारे दौड़ी हि चली आती ।।
तेरे चरण कमल चित लाऊ सदा करूं मैं आरती ।
कविगण ,,,,.,................................................५
झांसी उ प्र
मेरी यह रचना स्वरचित व मौलिक है ।
0 टिप्पणियाँ