कवयित्री आदरणीय गीता पांडेय जी द्वारा सुंदर रचना...

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_दिनांक/11.09.2020_

     _भारतेंदु हरिश्चंद्र_
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काशी नगरी के गोपाल चन्द्र गिरधर दास थे एक कवि।
सन 1850 ई. घर में हरिश्चंद्र का जन्म हुआ जैसे रवि।

दुर्भाग्य इनका रहा बचपन से ही ये कष्ट खूब उठाये।
5 वर्ष की उम्र में माता व10 वर्ष की उम्र में पिता गंवाए।

पारिवारिक दायित्वों के बोझ से उच्च शिक्षा भी नहीं पाए।
हिंदी, बांग्ला, संस्कृत, मराठी भाषा का ज्ञान घर पर ही लाए।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यिक कीर्तिमान खूब बनाये।
आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य के फिर ये जनक कहलाये।

1863 में कवि वचन सुधा 1873 में अन्य पत्रिका भी प्रकाशित।
सुप्रसिद्ध विद्वानों ने भारतेंदु उपाधि से किया था विभूषित।

प्रेम सरोवर औऱ कृष्ण चरित्र में दिखाए ये प्रेम भक्ति।
भारतवीरत्व, विजयिनी,विजय पताका में देश शक्ति।

नाटक में वैदिक हिंसा हिंसा न भवति व अंधेर नगरी।
काव्य में प्रेम तरंग, प्रेम प्रलाप,दानलीला,प्रेम माधुरी।

प्रेम प्रकाश औऱ चन्द्रप्रभा थे इनके रचित उपन्यास।
कश्मीर कुसुम चरितावली में लिखे पुरातत्व इतिहास।

अनेक निबंध संग्रह काव्य संग्रह लिखे यात्रा व्रतांत।
सत्य हरिश्चंद्र सती प्रलाप लोग पढ़े थे खूब हुए शांत।

ऋणी बने दानी प्रवृत्ति से फिर हुए क्षय रोग से ग्रसित।
34 वर्ष 4 माह अल्पायु सन 1885 में हुए कालकवलित।

मध्यकालीन कवियों के बने प्रदर्शक लिखे परिहास बन्धन।
गीता भी करती उन्हें वंदन व शत शत अभिनंदन।
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           _गीता पांडेय_
          _रायबरेली-उत्तरप्रदेश_

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