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एक माँ का दिल,ममता का सागर,
लहरे प्यार की बहती हैं ।
बच्चे खो जाते ,अपनी दुनियाँ में,,
पर माँ दुविधा में रहती है ।
अपने अंतर्मन की पीड़ा को भी ,
वो चुपके-चुपके सहती है ।
सुख-सुविधा कितनी भी हो ,
हरपल बच्चों की यादों में रोती है।
छवि बसाकर दिल मे वो ,
अपने बच्चों की सोती हैं ।
अपना हर चैन -सुकून खोकर,
हरदम बेचैन वो होती है।
बच्चों की हर कामयाबी में,
दिल से गर्वित होती है ।
कितना भी समझायें दिल को,
दुविधा में रहता माँ का दिल ।
मन्नत करती हर पल ईश्वर से
दिल से दुआएँ देती है ।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय
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