दिल की दुविधा#शशिलता पाण्डेय जी द्वारा बेहतरीन रचना #

    🌹  दिल  की दुविधा,🌹
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एक माँ का दिल,ममता का सागर,
    लहरे प्यार की बहती हैं ।
      बच्चे खो जाते ,अपनी दुनियाँ में,,
        पर माँ दुविधा में रहती है ।
अपने अंतर्मन की पीड़ा को भी ,
    वो चुपके-चुपके सहती है ।
       सुख-सुविधा कितनी भी हो ,
           हरपल बच्चों की यादों में रोती है।
    छवि बसाकर दिल मे वो ,
        अपने बच्चों की सोती हैं ।
            अपना हर चैन -सुकून खोकर,
                     हरदम बेचैन वो होती है।
  बच्चों की हर कामयाबी में,
   दिल से गर्वित होती है ।
     कितना भी समझायें दिल को,
           दुविधा में रहता माँ का दिल ।
                 मन्नत करती हर पल ईश्वर से
                        दिल से दुआएँ देती है ।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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