क्या पता था #प्रकाश कुमार मधुबनी जी द्वारा बेहतरीन रचना#

*क्या पता था*
*स्वरचित रचना*

क्या पता था धूल से सन जाएंगे।
 मधुर वाणी से फूल बन जाएंगे।।

औरो का पता नही मुझे किन्तु मेरे
 मन का पता नही था सायद मूझको।
 क्या पता तुम्हे देख तुम्हारे हो जाएंगे।।

सफर है यू  तो अनन्त गगन तक।
किन्तु सोचा ना था यही थम जाएंगे।।

इतने दूर है हम आपसे यू तो 
नही मिला, नही देखा आपको।

नही सोचा था फिर भी इतने दूर 
होकर भी इतने पास आ जाएंगे।
ना जाने कब आपके बन जाएंगे।।

*प्रकाश कुमार मधुबनी*

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