कवि दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"जी द्वारा 'रात बढ़ने लगी' विषय पर रचना

बदलाव अंतरराष्ट्रीय-रा
दिनाँक २५-९-२०२०
शीर्षक-"रात बढ़ने लगी"
रात बढ़ने लगी
नींद आने लगी
सब सोने लगे
जैसे जैसे रात बढ़ती है
गहरी नींद आती है
दिन भर काम से थके
रहते हैं जो लोग
बढ़ती रात का 
करते हैं पूरा उपभोग
पर उन्हें नींद नहीं आती
जो करते हैं अन्याय
जो करते हैं अत्याचार
जो लूटते हैं दूसरे का हक़
बेईमानी में डूबे रहते आकंठ
करते हैं घोटाले पर घोटाला
जो बोलते हैं उल्टे बोल
जैसे-जैसे रात गहराती है
उनकी बेचैनी बढ़ती जाती है
इधर रात बढ़ती है उधर चैन
और सुकून कम होती जाती है
रात जब बढ़ती है तन्हाई बढ़ती है
विरहन की तड़प बढ़ती है
बिस्तर पर करवट बढ़ती है
रात जब अपने शबाब पर होती है
प्रेमियों की उत्तेजना बढ़ती है
प्रेमी युगल की मस्ती बढ़ती है
रात का बढ़ना किसी के लिए
फायदेमंद साबित होता है तो
किसी के लिए दुःखदायी होता है
अगर बढ़ती रात का लाभ लेना है
"दीनेश" सुबह परिश्रम कीजिये
और दिन भर मस्त रहिये
रात को गहरी नींद सोइये

दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
रचना मेरी अपनी मौलिक रचना है।

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