बेरोजगारी#भास्कर सिंह माणिक ( कवि एवं समीक्षक) कोंच जी द्वारा बेहतरीन रचना#

मंच को नमन
दिनांक 25 सितंबर 2020
विषय -बेरोजगारी
हाथों में काम नहीं फिरते मारे मारे
कैसे  हो  उत्थान  प्रसन्न रहें दुलारे 

कुछ बोलो नमक मिर्च तेल कहां से लाएं
बताओ कढ़ाई तवा  को  कैसे समझाएं
बिगड़ा घर का अर्थशास्त्र   बेरोजगारी ने
बोलो रोटी की परिभाषा किसे सुनाएं

गगन में कैसे चमकेंगे भविष्य सितारे
हाथों  में काम नहीं फिरते मारे मारे

मैं  दूंगा काम ना कोई भूखा सोएगा
सुखचैन से हर व्यक्ति घर बैठे खाएगा
मिलेंगे भाषण सुसज्जित बेरोजगारी पर
रोटी कपड़ा और मकान जन-जन पाएगा

भाषण से भर देती है पेट मित्र सरकारें
हाथों  में काम नहीं फिरते मारे मारे

करें प्राइवेट कंपनी मनमानी अपनी
माणिक नित नित गढ़ते नई कहानी अपनी
करती परिहास खुलेआम बेरोजगारी 
आस काम की खोए युवा जवानी अपनी 

फूल मुरझाए कब आई कब गई बहारें
हाथों  में काम नहीं फिरते मारे मारे

रेल बेंच रहे हैं मित्र हवाई जहाज भी
अब हमें डर लगता है बिक न जाए ताज भी
होगा  कैसे निवारण बेरोजगारी का
सही सही न उत्तर देता अब सरताज भी

सब स्वार्थ में डूबे किसको कौन पुकारे
हाथों  में काम नहीं सकते मारे मारे
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक ( कवि एवं समीक्षक) कोंच

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