कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा रचना "आशा का परचम लहरा"

"आशा का परचम लहरा"
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   आरभ्भ का तो अवसान भी है!
    दुख-सुख का संगम ही जीवन।
    जीना तो हर हाल में निश्चित है!
     फिर गम किस बात का?हे प्राणी!
      थोड़ा धैर्यवान बनना होगा !
     प्रज्वलित कर उम्मीद का दीपक।
      आशा का परचम लहरा देंगें,!
     एक आगाज निश्चित नया होगा!
    विश्व मे नया परिवर्तन ला देंगें।
      फिर से जश्न मना सकते हम!
      कोरोना का कहर मिटा देंगे।
   हारेगा कोरोना भी एक दिन,
   महामारी मुक्त विश्व बना देंगें!
   जागरूकता का लेकर दीपक,
   आशा की किरण दिखा देंगें!
   ढूंढेगा कोई तो औषधी मानव?
   परिणाम सुखद सुन्दर होगा!
   कभी सुख का सूरज आलोकित,
    घिरती काली बदली भी है!
    एक दौर कोरोना काल समापन,
     आरम्भ नए युग का होगा!
     चैनों-सुकून का लौटेगा मौसम,
    आशा का परचम लहरा देंगें!
     मौत के इस मैदान में एकदिन,
      विजय पताका फहरा देंगे!
      कुपित प्रकृति का रौन्द्ररूप,
      संकल्प प्राश्चित का कर लेंगें!
       ये कठिन दौर है जीवन का,
     इससे नया एक सबक लेंगें!
     कुदरत का कठोर नियम-कानून,
      फिर से ना इसको तोड़ेंगे!
   जब-जब मानव ने प्रकृति को छेड़ा,
     प्रकृति ने भी किया बखेड़ा!
    कभी बाढ़ कभी महामारी भारी,
    डेंगू, मलेरिया स्वाइन फ्लू की बारी!
     निग्रह देगी प्रकृति प्रतिघाती,
      कोई निश्चित काल का पता नही?
     हर हाल में हम  कोरोना से जीतेंगे!
      ये दुर्दिन भी एक दिन बीतेंगे,
       आशा का परचम लहरा देंगें!
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        समाप्त 
  स्वरचित और मौलिक
  सर्वधिकार सुरक्षित
 कवयित्री-शशिलता पाण्डेय

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