कवयित्री सुशीला साहू शीला जी द्वारा दोहा विधा में रचना

*विधा-------दोहा*
*विषय-------रजत*
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रजत चाँदनी खिल उठी,लगता स्वर्णिम खास। 
छिपा तिमिर अब बादलों,लाये चाँद उजास।।
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नारी आभूषण सदा,स्वर्ण रजत परिजात।
धवल किरण सी देह में,सुन्दर सजती मात।।
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रात अमावस बाद ही,लगे निशा अब भोर।
श्वेत धवल सी पूर्णिमा,शरद चाँदनी ओर।।
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चाँद वर्ण मुखड़ा लगे,नारी कर श्रृंगार।
पूर्ण चंद्रमा सी दिखे,भाये नयन कटार।।
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रजत फूल खिलते जहाँ,चमके हैं परिवार।
स्वर्णिम आभा सी सजे,खुशियाँ दे संसार।।
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*सुशीला साहू शीला*
*रायगढ़ - छत्तीसगढ़*

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