जीना इसी का नाम है।#जयंती सेन 'मीना' नई दिल्ली जी द्वारा शानदार रचना#

जीना इसी का नाम है...... ‌‌

ये माना कि यह वक्त की जिद है ,
और वो हमें सता रहा है ।
जिंदगी जीने का बेहतरीन ढंग भी,
वो ही हमें सिखा रहा है।।

पुराना साल बीत कर,
नया साल आया था।
चारों तरफ खुशियों का
रेला सा ,लहराया‌ था।
पिछली रात दिल ने उसके,
लाखों कसमें खाईं थीं।
'खुद को बदलेंगे हम' ये कसम उसने ,
बार बार दोहराई थी।।

और दिनों से हटकर आज ,
सुहाना सा एक सवेरा हुआ ,
मन ही मन हम 'खुश रहेंगे' ये सोच,
उसे धीरे-धीरे गंवारा हुआ,
बस दो महीने ही बीते थे,
किसी सुनामी की तरह ऐसा हुआ,
'बा अदब बा होशियार 'की हांक लगाकर कोविड-19 हाजिर हुआ।

नाक मुंह में मास्क लगाकर ,
यह सोच बहुत गहरे पैठी
कैसे औरत घूंघट बुर्के में, 
आज तलक घर में बैठी?
सारे दिन वो घर में होती हैं 
और हम बाज़ारों में भटकते हैं,
घर की छत और दरों दीवारें बस,
सिर्फ उन्हीं को पहचानते हैं।।

"वक्त तुम पर अभी मेहरबां नहीं है
अगर ऐसा तुम मानते हो , 
हवा का रुख बदल कर तुम
उसकी तन्हाई दूर कर सकते हो"।।

उसको लगा कि जैसे वो
बहुत,लंबी नींद से जागा है ।
भूखे प्यासे, न खत्म होने वाली, 
रेगिस्तान में भागा है।।
एक झटके में वो उठ बैठा ,
अपनी' जिंदगी' का हाथ पकड़कर 
हक़ से यह कुछ कह बैठा --
"चलो आज से हम दोनों , 
अपनी जिंदगी साथ जीयेंगे!
कभी नहीं कुछ अलग सोचेंगे 
ना ही कभी कुछ अलग कहेंगे।
अब से 'घुटन' और 'भटकन'से उबर कर,
एक मीठी- सी ज़िन्दगी जीयेंगे।



यह मेरी स्वरचित और नितांत मौलिक रचना है इससे इसके सर्व अधिकार मेरे पास सुरक्षित हैं।


जयंती सेन 'मीना' नई दिल्ली।9873090339.

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