🌹कैनवास🌹
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जिन्दगी के कैनवास पर,
मैंनें जितनें चित्र उकेरे थे।
खूबसूरत रिश्तों के रंगों से,
सुन्दर प्यारे से रंग भरे थे।
एक दिन बारिस में भींग गए,
बरस गई दुख की बदली।
सारे रंगों का भेद खुला ,
सारे रंग तो निकले नकली।
देख-देख सुन्दर से रंगों को,
मन मे सुन्दर एहसास जगा था।
जीवन के सुन्दर चित्रपट पर,
मन में भी विश्वास जगा था।
रिश्तों के रंगो पर दिखनेवाली शोभा,
बस झूठी-शान सजावट वाली थी।
श्वेत रंग सा दिखने वाला भी,
रंग निकला बिल्कुल ही काला।
मैनें जितनें भी रिश्तों के रंग भरें थें,
जीवन के कैनवास पर ।
रंग शापित और जाली था।
गौर से जब मैंनें जीवन को देखा,
कैनवास तो खाली का खाली था।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका:- शशिलता पाण्डेय
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