देखिए
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आप प्रेम की राह चलकर तो देखिए
दो शब्द प्रेम के बोलकर तो देखिए
खाईयां पट जाएंगे सच कह रहा हूं मैं
आप सद्भावना अपनाकर तो देखिए
आप किसी को गले लगाकर तो देखिए
आप घृणा भाव त्यागकर तो देखिए
शत्रु भी झुका लेगा सर तुम्हारे सामने
आप कभी स्वयं झुककर तो देखिए
आप कभी स्वयं झुककर तो देखिए
आप बुजुर्गों की बात मानकर तो देखिए
आप ग्रंथों के मंत्र अपनाकर तो देखिए
क्रोध भी हो जाएगा शांत तुम्हारे सामने
प्रीति से प्रीति के गीत गाकर तो देखिए
असहाय को गले लगाकर तो देखिए
आप मद का मुखौटा हटाकर तो देखिए
चूमेगा आ लक्ष्य आपके कदम एक दिन
आप सच्चाई के पथ चलकर तो देखिए
आप जन गण मन गान गा कर तो देखिए
दिल से द्वेष के भाव मिटाकर तो देखिए
महक उठेगीं दिशाएं आपकी सुगंध से
माणिक नीति का पालन करके तो देखिए
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घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच
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