कवि सतीश लाखोटिया जी द्वारा 'शिक्षक दिवस' विषय पर रचना

*शिक्षक दिवस*

शिक्षा एवं शिक्षक का
बड़ा ही अटूट नाता 
माता पिता, भाई बहन, पत्नी
दोस्त संग हर कोई
जीवन के कर्म  पथ पर
समय-समय पर
शिक्षक की भूमिका निभाता ।।


जीवन में किताबें  
 पढ़ने को ही
न माने हम शिक्षा
कभी-कभी अनपढ़ भी
ज्ञान दे देता शिक्षक ही जैसा ।। 

 युद्ध के समय
भ्रमित होने पर
ज्ञानी अर्जुन को
 दिया था श्रीकृष्ण ने ज्ञान
 श्रीकृष्ण ने निभाई
 गुरु की भूमिका 
 धरा पर धर्मन्याय  को मिला
  समुचित सम्मान।। 

यह एक कडवा सच 
गुरु शिष्य,पालकगण का
नहीं रहा पहले जैसा
आचरण संग स्तर 
गुरु यदि डांट दे
बच्चे को किसी गलती पर
मां-बाप उगल देते
शब्द रूपी जहर ।।

पहले के जमाने में
हुआ करता था गुरुकुल
बिना पैसों से
बच्चे करते थे पढ़ाई
 शिक्षा रहती थी
धर्म न्याय के अनुकूल।।

अब तो शिक्षकों ने बना दिया
शिक्षा को व्यापार
पैसा देकर पाओ शिक्षा
यही  इनका  लक्ष्य
यही इनका आधार।। 

माना समय के साथ चलना  बहुत जरूरी
पैसा भी कमाना 
निहायत जरूरी 
 महंगी फीस वसूलना
 यह कैसी 
इनकी मजबूरी ।। 

जिनके पास नहीं है पैसा
वे मन मसोसकर 
 बनाए रखते शिक्षा से दूरी ।। 

कहना बस इतना ही
90, 95, 100 अंक 
 प्राप्त करते बच्चे
कहती है, दुनिया
स्कूलों के कारण नही
ट्यूशन क्लासेस की
वजह से मिले अंक 
इसी बात पर 
 खुश होवें या रोएं 
 यह हमको 
 समझे  ना ।। 

   कुछ गुरु आज भी चल रहे
  नैतिकता के पथ पर 
  कर रहे नेकी का काम
  मां सरस्वती को
  वंदन करके ।। 

गुरु का अपना महत्व
नहीं इससे इनकार
 सच्चे पथ पर चले
इस युग के गुरु
यही चाहता 
सारा संसार ।। 


सरकार भी हो सचेत 
सरकारी स्कूलों की
ओर  दे ध्यान
  गुरु होता अपने आप में महान
करे वह आर्थिक रूप से कमजोर
होनहार बच्चों का भी कल्याण।। 

ये न समझे
मैंने किया 
गुरुओं के प्रति प्रकट अपना रोष
निकाला उनमें दोष
मैंने तो निभाया अपना शिष्य धर्म
गुरुओं ने ही सिखाया हमें पाठ
चाहे कोई भी हो आपके सामने
दिल से
सत्य ही सत्य तू बोल
सत्य ही सत्य तू बोल

सतीश लाखोटिया
नागपुर, महाराष्ट्र
 9423051312
9970776751

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