कवयित्री गीता पाण्डेय जी द्वारा 'बेटियाँ' विषय पर रचना

बेटियाँ  



बेटियाँ ही होती है , घर का श्रंगार ।
इनसे पल्लवित होता है , घर द्वार ।।

ये घर मे चहचहाती , हुई है गौरैया ।
खुश देखना चाहती है , बाप , भैया
 ।।

माँ-बाप के दर्द को , ये समझती है ।
फिर भी दूसरों से , नही कहती है ।।

कष्ट को सहकर , चाहती वे रहें प्रसन्न ।
सदा माँ-बाप रहें खुशी के आसन्न ।।

भाई को राखी बांध देती है , ये दुवा ।
खुशी ही खुशी रहे , दुःख होता धुँवा ।।

गरीबी में भी हौसला रखती भरपूर ।
कभी दिखाती नही , मैं हूँ मजबूर ।।

कामयाबी का बजाती है , वह डंका।
ठान ले तो काम मे नही , कोई शंका ।।

पढ़ाई प्रतियोगिता या हो कोई खेल ।
लड़कियां तो अब , चलाने लगी रेल ।।

अंतरिक्ष में भी,वे भर रही है उड़ान ।
पायलट बन कर , चला रही है विमान ।।

आई०ए०एस , आई०पी०एस , में है फतह ।
बेटियाँ तो कामयाबी में कर रही है सतह ।।

बेटा-बेटी में नही करनी चाहिए भिन्नता ।
उससे आती है जीवन मे बड़ी खिन्नता ।।

बेटों से बढ़कर बेटी को भी दे मौका ।
बेटी माँ-बाप को , देती नही है धोखा ।।

दूर रहकर भी रहती दिलों के पास है।
ससुराल में है , मायके का अहसास ।।

यही दुर्गा, लक्ष्मी, शक्ति में माँ काली ।
सरस्वती में भी यही , ज्ञान की है थाली ।।



उपप्रधानाचार्या- गीता पाण्डेय 
रायबरेली , उ०प्र०

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