बेटियाँ
बेटियाँ ही होती है , घर का श्रंगार ।
इनसे पल्लवित होता है , घर द्वार ।।
ये घर मे चहचहाती , हुई है गौरैया ।
खुश देखना चाहती है , बाप , भैया
।।
माँ-बाप के दर्द को , ये समझती है ।
फिर भी दूसरों से , नही कहती है ।।
कष्ट को सहकर , चाहती वे रहें प्रसन्न ।
सदा माँ-बाप रहें खुशी के आसन्न ।।
भाई को राखी बांध देती है , ये दुवा ।
खुशी ही खुशी रहे , दुःख होता धुँवा ।।
गरीबी में भी हौसला रखती भरपूर ।
कभी दिखाती नही , मैं हूँ मजबूर ।।
कामयाबी का बजाती है , वह डंका।
ठान ले तो काम मे नही , कोई शंका ।।
पढ़ाई प्रतियोगिता या हो कोई खेल ।
लड़कियां तो अब , चलाने लगी रेल ।।
अंतरिक्ष में भी,वे भर रही है उड़ान ।
पायलट बन कर , चला रही है विमान ।।
आई०ए०एस , आई०पी०एस , में है फतह ।
बेटियाँ तो कामयाबी में कर रही है सतह ।।
बेटा-बेटी में नही करनी चाहिए भिन्नता ।
उससे आती है जीवन मे बड़ी खिन्नता ।।
बेटों से बढ़कर बेटी को भी दे मौका ।
बेटी माँ-बाप को , देती नही है धोखा ।।
दूर रहकर भी रहती दिलों के पास है।
ससुराल में है , मायके का अहसास ।।
यही दुर्गा, लक्ष्मी, शक्ति में माँ काली ।
सरस्वती में भी यही , ज्ञान की है थाली ।।
उपप्रधानाचार्या- गीता पाण्डेय
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