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पकड़ प्यार सत्य -धर्म की डोर,
बढ़ सर्वदा प्रकाश की ओर।
मिल बांटकर खा निज थाली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
औरों से सदगुण सम्भाल ,
निज का अवगुण दोष निकाल।
मन कर्म, वचन की कर रखवाली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली ।
वैर विरोध का नाम मिटाओ ,
आपस में सदभाव बढा़ओ।
पर पै कभी न पीटो ताली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
मधुर वचन सबही से बोल,
मानव जीवन है अनमोल।
पकड़ लो पुण्य -धर्म की डाली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली ।
पर पीड़ा में हाथ बढा़ओ,
जग में सुख शान्ति उपजाओ।
विश्व बाग का बन जा माली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
दीन -दुखिया, अबला -अनाथ,
सबके गले लगा ले साथ ।
जन -मानस में ला हरियाली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
कर प्रभु में श्रध्दा विश्वास,
मत हो जीवन में निराश।
छोड़ पाप जंजाल ए जाली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
द्वेष, दम्भ, पाखंड, बुराई,
मै ,मेरा, निज स्वार्थ, बडा़ई।
छोड़ सभी करतुतें काली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
पढ़ अनुपम वेदों का सार,
अपना घर -आंगन बुहार।
नहीं पडोगे नर्क की नाली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
हर में हरि की कर पहचान,
सब हैं प्रभुवर की संतान।
जला ले अन्तः ज्योति की लाली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
हरपल सामने मृत्यु खडी़ है,
फिर मानव तुझे कुछ न पडी़ है।
बाबूराम कवि बात निराली,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
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✍️बाबूराम सिंह कवि
ग्राम-बडका खुटहां, पोस्ट -विजयीपुर, जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508
मो0नं0-9572105032
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