चलो आज शिल्पकार बन जाते हैं,
हिंदी की नई मूरत बनाते हैं।
शब्दों को भाव देते हैं,
अक्षरों से सूरत बनाते हैं।
नए नए सहित्यकार हैं हम,
अंकुरित होना अभी है बाकी।
शब्दों के कुछ बीजों को बो,
चलो हिंदी की फसल उगाते हैं।
चलो आज शिल्पकार बन जाते हैं,
हिंदी की नई मूरत बनाते हैं।
विश्व धरा पर न कोई भाषा,
जो इतनी ज्यादा सुखदाई है।
है अन्य भाषाओं की जननी,
और मातृ भाषा कहलाई है।
लेखिनी का हल ले हांथों में,
चलो खेतहार बन जाते हैं।
चलो आज शिल्पकार बन जाते हैं,
हिंदी की नई मूरत बनाते हैं।
परिपूरित इसके भाव सदा,
बड़ी मधुर सरल सुरीली है।
साहित्य का है परिधान रही,
भावों से बन जाती लचीली है।
जिस भाव से है बोली जाती,
चलो वही भाव बन जाते हैं।
चलो आज शिल्पकार बन जाते हैं,
हिंदी की नई मूरत बनाते हैं।
पुत्र स्व०श्री अमरेश बाजपेई
एवं स्व०श्री मृदुला बाजपेई
बरेली (उ०प्र०)
८१२६८२२२०२
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