आजाद नज़्म
जाने किस गुनाह की, सजा भुगत रहा हूँ
हर कदम पर एक नई जंग, लड़ रहा हूँ
माना कि आज बस, खामोश सा हूँ मैं
इसका मतलब ये नहीं कि, गुनहगार हूँ मैं ..।।
सबकी खैरो खबर रखता हूँ, जमाने में
किसी भी बात से अनजान, नहीं हूँ मैं
इल्म है मुझे भी, तू ये न समझ लेना
जमाने की निगाहों से, वाकिफ हूँ मैं ..।।
मेरी खामोश निगाहों को, खूब देखा तूने
इनमें छिपी दर्द की एक, दास्ताँ हूँ मैं
मुस्कुराहट देखी है, तूने लबों पर मिरे
सीने में कैद दर्द का, सैलाब भी देख..।।
इतने दिन गुजारे हैं, तेरे बिन जहाँ में
अभी तक होता इस बात का, यंकी कहाँ है
ख्वाबों में भी न आया कर, तूअब हमारे
बड़ी मुश्किल से, दिल को मनाना पड़ता है ..।।
डॉ. राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड
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