जब पहुँची उनके आँगन में
कही उपेक्षा करें न मेरी
अकुलाई से थी मन में
शब्दो का ऐसा संयोजन करने वाली
इलाहाबाद के निहालपुर को जन्म
लेकर जिसने पावन कर दिया
महादेवी की सखी सहेली
तांगे में आते जाते रचनाएँ लिख देती थी
विद्रोह का स्वर रखती थी
पहली सत्याग्रही स्त्री बन
स्वतंत्रता आंदोलन में कूदी थी
कविता संग्रह जिनके मुकुल और त्रिधारा थे
बिखरे मोती कहानी संग्रह पहला था
खूब लड़ी मर्दानी थी
वो तो झाँसी वाली रानी थी
अद्भुत कविता रचकर जिसने
कितनो में वीर रस फूंका था
हाय अफ़सोस कि अड़तालीस की
अल्पायु में दुनियाँ से वो विदा हुई
जगमगाती एक किरण जैसे
कोहरे के धुँए में गायब हुई
मानो दुनियाँ जैसे शिथिल हुई
बिन सुभद्रा साहित्य की दुनियाँ खाली हुई।।
स्वरचित
नेहा जैन
0 टिप्पणियाँ