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हिंदी साहित्य जगत के शिरोमणि,
तत्कालीन हिंदी नवीन-धारा के प्रवर्तक।
हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकारों में अग्रणी,
रचनाएँ प्राकृतिक सौंदर्य-सुसज्जित मनमोहक।
माँ भारती के कृपा से अद्भुत प्रतिभा के धनी।
जन्म हुआ अल्मोड़ा में20 मई 1900 में,
इनके पैतृक गाँव का नाम कौसानी।
जन्म लेते ही माता परलोक सिधारी,
नाम रखा मातामही ने गुसाईंदत्त।
मातामही ने किया पल्लवित-पुष्पित,
अपना नाम नही भाया बदला नाम।
बने साहित्यकार सुमित्रानन्दन पंत,
प्राथमिक शिक्षा अल्मोड़ा में।
उच्च शिक्षा को पहुँचे काशीधाम,
शिक्षा-दीक्षा छोड़ अधूरी बने गांधीवादी।
मन भाया सत्याग्रह, स्वतंत्रता संग्राम,
हिंदी,अंगेजी,बंगला का स्वाध्याय किया।
बालपन से ही करते काव्यसृजन अप्रतिम,
इनकी कृतियां वीणा, उच्छवास,लोकायतन।
पल्लवणी, मधुज्वाला, मानसी, सत्यकाम,
बीणा, वाणी, ग्रंथि,युग,पथ, पल्लव,गूँजन।
परिलक्षित रचनाओं में प्रकृति प्रेम असीम,
उनकी कृति चिदम्बरा ने दिलाया पुरष्कार।
भरतीय ज्ञानपीठ का सर्वोउत्कृष्ट सम्मान,
सोवियत नेहरू शांति पुरष्कार से नवाजा।
उनकी उत्कृष्ट रचना नाम जिसका लोकायतन,
योगी अरविंद के विचारों से हुए प्रभावित।
स्वर्णकिरण और स्वर्णधूलि का किया सृजन,
सौंदर्य और पवित्रता से करते साक्षात्कार।
वे रहे प्रगतिशील,समाजवादी आदर्शो से प्रेरित,
प्रगतिशीलता लेखन में युगांत से ग्राम्या बतलाती।
अध्यात्मवादी,अरविंद दर्शन से रहे प्रभावित,
28 दिसम्बर1977 को हुए चिरनिद्रा में विलीन।
एक मानवतावादी,छायावादका आधार स्तम्भ,
गीत उनके व्यापक,वाणी और पल्लव में संकलित।
वो अपनी रचनाओं में सृजन कर जीवनदर्शन,
धरा पर अवतरित कवि,रचनाकार और संत।
पद्मभूषण से अलंकृत कर साहित्य सेवा अनवरत,
एक प्रगतिशील दिशा के प्रवर्तक सुमित्रानंदन पंत।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय
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