कवि रूपक जी द्वारा 'मेरे कुछ अपने' विषय पर रचना

मेरे कुछ अपने

मुझे जिंदगी जीना है अपने तरीके से
एक सपना है एक शौक है मेरा
जिसे पूरा करने की हौसला भी है।

लेकिन डर लगता है कुछ अपने से
वो आगे पैर बढ़ने से पहले ही
मिलकर पैर खींचने लगता है मेरा
सफर के आगे वो गड्ढा खोद देता है।

अकेला पाकर सब नोचने दौड़ता है
डरता हूं कहीं मसल ना दे सपनों को
मुझे अपने अनुसार नहीं बल्कि
ये अपने अनुसार जिंदगी जीने कहता है।

ये मिलकर बांधना चाहता है मुझे
उस  मतलब की रिश्तेदारी से
मुझे अपनी जिंदगी ये जीने नहीं
मर मर कर जिंदगी जीने कहता है।

मैं कभी ये सोचता हूं 
क्या ये सच में अपने है ?
या सिर्फ मतलब के लिए अपने हैं।
©रुपक

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