मंच को नमन
दिनांक- 21 सितंबर 2020
विषय -प्रीत परम उपहार है
प्रीत
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आओ करें हम सबसे प्यार
हम करें द्वेष का तिरस्कार
प्रिय प्रीत परम उपहार है
खुल जाता हृदय का द्वार है
मिटाए मन के सारे भेद
करते किसी का सत्कार है
मत करो कभी दुर्व्यवहार
आओ करें हम सबसे प्यार
शूल भी फूल बन जाते हैं
दुर्गम सुगम बन जाते हैं
बाधाएं राह छोड़ती है
दुश्मन दोस्त बन जाते हैं
आओ करें हम सबसे प्यार
विष भी अमृत बन जाता है
निठुर भी मोम बन जाता है
देख के माणिक सांची प्रीत
पत्थर ईश्वर बन जाता है
धरा नभ सबसे करे दुलार
आओ करें हम सबसे प्यार
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक)कोंच
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