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स्नेह दुलार~
प्रेम व्यवहार से
खुशियाँ द्वार
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प्रेम हैं जहाँ~
दिलों से नफ़रत
मिटती वहाँ
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छोड़ दो गुस्सा~
क्यों बनाते हो उसे
अपना हिस्सा
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जग की रीत~
पराये भी अपने
प्रेम से जीत
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प्रेम मिठास~
जब दिलों से मिटे
सारी खटास
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निर्मल जैन 'नीर'
ऋषभदेव/उदयपुर
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