मेरे देश का बचपन#अरविन्द अकेला जी द्वारा खूबसूरत रचना#

कविता 
   मेरे देश का बचपन 
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सोया है आज मेरे देश का बचपन,
जमीन ,रेत,पाषाणो' पर,
जिस उम्र में खेलना पढ़ना चाहिये,
करता मजदूरी,होटल में खलिहानों पर ।

हमने माना बाल मजदूरी,
देश के लिये बहुत बड़ा आभिशाप है,
ढ़केल रहे जो बचपन को गढ़े में,
उनको मारने में कोई नहीं पाप है।

करा रहे लोग बाल मजदूरी,
बेबस ,दुखी और लाचारों से,
क्या लानी होगी देश में परिवर्तन,
बन्दूक,तीर,तलवारों से।

ऐसे नन्हें नाजूक बच्चों से ,
बाल मजदूरी बन्द कराना होगा,
जिन हाथों से करते बाल  मजदूरी,
उन हाथों में कलम किताब थमाना होगा।
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         अरविन्द अकेला

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