कवयित्री कंचन जयसवाल जी द्वारा रचना

चलो हाथों में हाथ लिए फुरसत से बैठे कहीं पर 
रेत की तरह हर पल फिसलता चला गया
कुछ पल बचे है जिंदगी के
जिन्हें हम जी ले फिर से
जिम्मेदारी और कर्तव्य की डोर पकड़े पकड़े
ना जाने कब हम आ गए तीसरे पड़ाव पर
आईने में सर की सफेदी देखी तो लगा
चलो खुशियों के पल चुराए कहीं से
और फुरसत से बैठे कहीं पर
शाम तो हर रोज होती है
पर दिल करता है यह शाम यहीं रुक जाए
और चांद कहीं छुट्टी पर चला जाए
हम दोनों हाथों में हाथ लिए
इस सांझ को निहारते रहे
चलो खुशियों के पल चुराए कहीं से
और फुरसत से बैठे कहीं पर

कंचन जयसवाल
नागपुर महाराष्ट्र

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