कवयित्री नीलम डिमरी जी द्वारा 'सोलह श्रृंगार से सजी दुल्हन' विषय पर रचना

नमन वीणा वादिनी
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दिनांक--२७/०९/२०२०
दिवस ---रविवार

  **सोलह श्रृंगार से सजी दुल्हन**
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शुभ प्रतीक दुल्हन का श्रृंगार,
यही उसके जीवन का आधार।
सौभाग्यशाली है वह इससे,
यह है उसके जीवन का अधिकार।

श्रृंगार ही उसका सम्मान है,
सिंदूर, बिंदिया उसका अभिमान है।
गजरा, मांगटीका  तो झूमते,
बालियों से सजा उसका कान है।

लाल रंग का जोड़ा चमके,
मेहंदी तो हाथों में दमके।
पायल,बिछुए की छन- छन,
कंगना -चूड़ी हाथों में खनके।

लगा काजल वह चलती है,
पिया मिलन को तरसती है।
हार सजाये, नथनी पहने,
घर पिया के वह चलती है।

घूंघट में सिमटा यह सोलह श्रृंगार,
दुल्हन का करे दूल्हा दीदार।
कजरारी आंखों में मस्कारा लगाए,
जीवन में आ जाती नयी बहार।

फिजा में खुशबू महकती है,
जब दुल्हन सोलह श्रृंगार करती है।
नई- नवेली शरमाई सी वह,
यादों को मन में समेटती है।


   रचनाकार-- नीलम डिमरी
    चमोली,,,,, उत्तराखंड

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