कवि सहज जी द्वारा विचारात्मक रचना

त्रेता से इस कलियुग तक बस रावण ही बलशाली है।
राम मुझे तुम क्षमा करो पर कैसी ये खुशहाली है।

कहीं पे रोशन महल खुशी से कहीं गमों की छाया है।
उल्लास कहीं पर उत्सव का कहीं सितम का साया है।
रामराज की आस में बीते जाने कितने वर्ष मगर।
हे शबरी के उद्धारक ये कैसी तेरी माया है।

दुनिया का जो दर्द न समझे कैसी ये दीवाली है।
राम मुझे तुम क्षमा करो पर कैसी ये खुशहाली है।

कहाँ अपहरण बंद हुआ भारत में सीताओं का।
पापी दुशासन अब भी करते चीर हरण अबलाओं का।
त्रेता, द्वापर वाले प्रभु तुम कब आओगे कलियुग में।
कब उद्धार करोगे कैकई कौशल्या माताओं का।
दिन खर दूषण बने हुये हैं रात कंस सी काली है।

राम मुझे तुम क्षमा करो पर कैसी ये खुशहाली है।
दुनिया को जो दर्द न समझे कैसी ये दीवाली है।

हुई अयोध्या जगमग लेकिन कब होगी ये आस खतम।
कलुषित कृत्यों का कलियुग से कब होगा संत्रास खतम।
सत्य तड़पता है तंबू में, असत्य दमकता लंका सा।
कलियुग में मर्यादाओं का कब होगा वनवास खतम।
कपटी बाबा लूट रहे हैं, संतो की बदहाली है।

राम मुझे तुम क्षमा करो पर ये कैसी खुशहाली है।
दुनिया का जो दर्द न समझे ये कैसी दीवाली है।

*"सहज*

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