कवयित्री नीलम डिमरी जी द्वारा 'माँ का चूल्हा' विषय पर रचना

नमन वीणा वादिनी
दिनांक--30/09/2020
दिवस --बुधवार

    ** मांँ का चूल्हा**


वह मेरी मांँ का चूल्हा,
मिट्टी ,गोबर से लीपा हुआ।
खुशबू उसकी सोंधी सोंधी
घर, आंँगन महका हुआ।

माँँ बैठी एक किनारे,
उस पर रोटी सेंकती थी।
मैं मांँ के बगल में चुपके से,
उस संग रोटी बेलती थी।

हवा के तेज झोंके से,
आग की लपटें बढ़ती थी।
पानी डालकर उसको मा,
धीरे-धीरे बुझाती थी।

आंखों में धुआं भर जाता,
रोटी बारी-बारी से पकती थी।
थोड़ा विलंब हो जाने पर,
रोटी आंँच में जलती थी।

बहुत मनोयोग से वह,
चूहा माँँ ने बनाया था।
चिकनी लाल मिट्टी से,
को भरपूर सजाया था।


मंडुवे की रोटी का स्वाद,
माँँ गुनगुना उठती थी।
घी और गुड़ की डली से,
हमारी रोटी सजती थी।


      नीलम डिमरी
     चमोली,, उत्तराखंड

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