*खुशबू* (माँ के हाथ की रोटी की) जी द्वारा बेहतरीन रचना#

नमन प्रियवर
              शुभप्रभात 
           *30.09.2020*
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               *खुशबू* 
   *(माँ के हाथ की रोटी की)*   
                        
*मेवा, मिष्ठान, माखन, मिश्री,*
*कोई छप्पन भोग सुहाते नही।*

*फीके लगते पकवान सभी,*
*मेरे मन को ये भाते नही।।*

*संतुष्टि मिले तेरे हाथों बनी माँ,*
*रूखी सूखी रोटी और नमक,*

*तब सब व्यंजन लगें स्वादहीन,*
*तेरे हाथों की ख़ुशबू पाते नही।।*
----------------------------------------आशुकवि प्रशान्त कुमार"पी.के."
  पाली हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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